एसएम सहगल फाउंडेशन एक गैर सरकारी संस्था है जो 22 वर्षों से ग्रामीण भारत में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरर्णीय सकारात्मक बदलाव के लिए सामुदायिक नेतृत्व को विकसित करने का कार्य कर रही है ताकि ग्रामीण आँचल का हर व्यक्ति सुरक्षित व समृद्ध जीवन जी सके। फाउंडेशन की टीम का सफ़र तीसरे दशक में भारत के 11 राज्यों के 1,348 गांवों में जल प्रबंधन, कृषि विकास और स्थानीय भागीदारी और स्थिरता, ट्रांसफॉर्म लाइव्स (ऑन स्कूल एट ए टाइम), ग्रामीण समुदायों को सशक्त व शिक्षित करने तथा उनके साथ बेहतर संवाद स्थापित करने के लिए सामुदायिक मीडिया (सामुदायिक रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात एफ एम 107.8, पॉडकास्ट, ट्रेनिंग मैन्युअल तथा अन्य संचार सामग्री) के माध्यम से समुदायों को जागरूक व सशक्त कर रहा है । इन सभी कार्यक्रमों को पूरे अनुसंधान और शोध के बाद क्रियान्वन किया जाता है ताकि सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो। प्रत्येक कार्यक्रम के केंद्र में “महिला सशक्तिकरण” और “सामुदायिक भागेदारी मुख्य रूप से शामिल है … इस संस्था के डॉ वेणु माधव, प्रिंसिपल लीड -अनुकूल प्रौद्योगिकी, कृषि विकास ने फसल क्रांति के माध्यम से किसानों को कृषि में आधुनिक व डिजिटल संसाधनों को अपनाकर खेती करने की सलाह दी है। उनसे साक्षात्कार में हुई बातचीत के अंश :
आप अपने विषय में कुछ बताएं ?
सभी को नमस्कार मैने तेलेंगाना यूनिवर्सिटी से एग्रीकल्चर में बीएससी किया व कीटविज्ञान में एमएससी एवं पीएचडी किया है. मेरा मुख्य कार्य क्षेत्र कीट विज्ञान ही है. मैंने सऊदी अरब में पाम डेट पर कार्य किया. इसके बाद एक बहुराष्ट्रीय कृषि कंपनी में मैंने मक्का की वैरायटी पर कार्य किया है तथा दो वर्ष तक घाना में कीटों अनुसंधान पर किया. इसके बाद में कार्य करने बाद एस एम सहगल फाउंडेशन के साथ अनुकूल प्रौद्योगिकी – कृषि विकास पर कार्य कर रहा हूँ.
किसान विभिन्न संसाधनों के माध्यम से कैसे खेती में बदलाव ला सकते है ?
किसानों को कृषि संसाधनों के सही प्रयोग के लिए काफी परिवर्तन करने होगे क्योंकि फसल चक्र की शुरुआत ही बीज से होती है इसलिए कृषि के सही संसाधनों के इस्तेमाल के लिए किसानों को शुरुआत से अंत तक परिवर्तन करके सही संसाधनों का प्रयोग करना होगा तभी किसान अच्छी आय ले सकते हैं. किसानों को जानना होगा कि उनके खेत की मिट्टी का स्वस्थ कैसा है, इसके लिए समय दृसमय पर मिट्टी की जांच करवाकर पता किया जा सकता है कि मिटटी को किन पोषक तत्वों की आवश्यकता है. इसी के साथ जल संरक्षण करना भी अति आवश्यक है इसके लिए सूक्ष्म व ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग, लेजर लेवलिंग, डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) जैसी पद्धतियों को अपनाना चाहिए। जल संरक्षण पद्धतियों के उपयोग से पानी की खपत 25 से 85 प्रतिशत कम हो जाती है । जल बचाने वाली कृषि तकनीकों के साथ-साथ जुताई तकनीकों को बढ़ावा देना जैसे जीरो टिलेज और मल्चिंग से मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों में वृद्धि होती है और फसलों के विकास के लिए अनुकूल वातारण मिलता है। इसके अलावा सौर उर्जा कृषि पद्धतियों का कृषि में प्रयोग पर्यावरण के लिए उपयोगी है। सौर उर्जा कृषि पद्धति कार्बन फुटप्रिंट को कम करता है। इसके तहत सोलर जल पंप और सोलर स्प्रे शामिल हैं। इसी के साथ किसानों को ग्रीन हाउस खेती को अपनाने के लिए किसानों को जागरूक होने की ज़रूरत है जो जलवायु प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए ज़रूरी है जो फसल की विभिन्न कीटों से रक्षा करता है।
कृषि को प्रभावित करने वाले कौन से मुद्दे है?
जिस तरीके से लगातार जनसख्या बढ़ती जा रही है उसके अनुसार खाद्य उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है. यदि हम कृषि को प्रभावित करने वाले मुद्दों की बात करें तो इसमें सामयिक(बवदजमउचवतंतल) मुद्दे, आर्थिक मुद्दे और पर्यावरणीय मुद्दे शामिल है. आज भी काफी किसान पारंपरिक तरीकों से खेती करते आ रहे हैं वह खेती के नवनीतम तकनीकों को अपनाने में झिझकते है. आज की युवा पीढ़ी की खेती में कोई खास रुचि नहीँ है ऐसे में एक बड़ी समस्या हमारे सामने आकर खड़ी हो सकती है. मौजूदा समय में खेतों में काम करने के लिए लेबर मिलना मुश्किल हो जाती है. इसके अलावा लगातार मिटटी की घटती उर्वरा क्षमता कम होती जा रही है.यह सब मुद्दे कृषि को प्रभावित कर रहे हैं.आज ज़रूरत है कि कृषि में आधुनिकरण करने ताकि युवा पीढ़ी कृषि में रुचि ले और देश की खाद्य उत्पादन में अपना योगदान दे सकें .
इन मुद्दों से कैसे निपटा जा सकता है ?
उपरोक्त मुद्दों के समाधान के लिए हमें कृषि अनुकूल तकनीकों को अपनाना होगा. इसमें मुख्य रूप से कृषि यंत्रीकरण समय की मांग है क्योंकि कृषि में यंत्रीकरण मौजूदा समय में सबसे बड़ा कृषि संसाधन है इसलिए कृषि यंत्र निर्माताओं को चाहिए की वो छोटे किसानों के लिए ऐसी तकनीके उपलब्ध कराएं जिससे कि कम भूमि वाले किसान भी कृषि तकनीकों का उपयोग करके अच्छी पैदावार ले सके.
एसएम सहगल फाउंडेशन किसानों के साथ कैसे जुड़ी हैं ?
सहगल फाउंडेशन के कृषि विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य महिला किसानों का क्षमता निर्माण करना, बेहतर कृषि पद्धतियों और फसल की पैदावार बढ़ाने वाली नई तकनीकों, जल संरक्षण और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करके जलवायु अनुकूल कृषि विकास को बढ़ावा देना है। फाउंडेशन की टीमें छोटे किसानों को मिट्टी जांच के आधार पर ज़रूरी पोषक तत्व उपलब्ध करवाना और उपज गुणवत्ता में सुधार करने के लिए बेहतर कृषि तकनीकों और प्रौद्योगिकियों पर प्रशिक्षण देती है ताकि किसान कृषि में उन्नत तकनीकों को अपनाकर बेहतर उपज प्राप्त कर सकें। कृषि को जलवायु अनुकूल बनाए रखने के लिए मिट्टी जाँच, उचित बीज दर, बीज बोने के तरीके, आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व और मैक्रोन्यूट्रिएंट्स की सही गुणवत्ता को खेत में डालना, कीट और खरपतवार प्रबंधन कर फसलों को बीमारियाँ से बचाने का प्रशिक्षण किसानों को प्रशिक्षण सत्रों, खेत दिवस आदि का आयोजन कर प्रदान किया जाता है। इसी के साथ बागवानी, पशुधन प्रबंधन और कृषि में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उपयोग के बारे में भी किसानों को जागरूक करना इसमें शामिल है। फाउंडेशन की टीम ने दुनिया भर के समान लक्ष्यों वाले संगठन, गैर-लाभकारी और शिक्षण संस्थान के साथ साझेदारी और सहयो माध्यम से खाद्य सुरक्षा और किसानों के लिए कार्य कर रही है.महिला किसानों की क्षमता वृद्धि पर भी हम काम कर रहे हैं.
आप किसानों को क्या कहना चाहेंगे ?
मै किसानों को कहना चाहूँगा कि बहुत तेज गति से आधुनिकरण हो रहा है . बढ़ते शहरीकरण के चलते किसानों को अपने खेती करने के तरीकों में बदलाव करना होगा तथा नयी कृषि तकनीकों को अपनाना होगा तभी किसान समृद्ध हो पाएँगे. खेत खलियान की शान हमारे किसान.