कृषि विज्ञान केंद्र का कृषि प्रसार में बहुत बड़ा योगदान है। कार्यरत कृषि वैज्ञानिक किसानों को अच्छी कृषि तकनीक प्रदान करने के लिए लगातार मेहनत करते है। ऐसे ही किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों से जोड़ते है फसल क्रांति ने कृषि विज्ञान केंद्र चितोड़ा, मुज़फ्फरनगर के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ। संजय सिंह जी से बात की उन्होंने बताया कि यह कृषि विज्ञान केंद्र किस तरह किसानों को नई तकनीकों से अवगत करा रहा है।
अपने विषय में कुछ बताए ?
मेरा नाम डॉ. संजय सिंह मैंने जीबी पन्त यूनिवर्सिटी से कृषि अभियांत्रिकी में स्नातक किया। इसके बाद भोपाल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से परास्नातक और सरदार वल्लभभाई पटेल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया। मौजूदा समय में मैं कृषि विज्ञान केंद्र चितोड़ा में एसोसिएट डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हूँ। कृषि क्षेत्र में मेरा मुख्य विषय कृषि अभियांत्रिकी है।
कृषि विज्ञान केंद्र चितोड़ा के बारे में बताए ?
कृषि विज्ञान केंद्र चितोड़ा की शुरुआत वर्ष 2017 के नवम्बर में हुई थी तभी से मै इस कृषि विज्ञान केंद्र में कार्यरत हु।इस कृषि विज्ञान केंद्र का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही एवं मुज़फ्फरनगर से सांसद संजीव बालियान जी के द्वारा किया गया था। इसको बनने में करीब करीब दो वर्ष का समय लगा। हमने शुरुआत से ही इस कृषि विज्ञान केंद्र में कृषि गतिविधिया शुरू कर दी थी। इस कृषि विज्ञान केंद्र के पास 12.6 हेक्टेयर भूमि है। जिसमें लगभग आधी भूमि में बागवानी से अच्छादित है। बाकी भूमि पर भी सुधार कार्य जारी हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा क्या क्या कृषि गतिविधिया चल रही हैं?
इस कृषि विज्ञान में काफी कृषक गतिविधियाँ चल रही हैं। इस कृषि विज्ञान केंद्र का मुख्य कार्य है किसानों को अत्याधुनिक कृषि तकनीक उपलब्ध कराना। इस कृषि विज्ञान में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक किसानों को अत्याधुनिक कृषि यंत्रों , बागवानी,मृदा संरक्षण, जल संरक्षण, फसल प्रबंधन एवं खेती में होने वाली सभी आवश्यक क्रियाओं का प्रशिक्षण देते हैं। यह प्रशिक्षण के साथ साथ उनको फसलों के प्रदर्शन एवं नई नई किस्मों की भी जानकारी दी जाती है जिससे किसानों को काफी लाभ मिलता है।
कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किसानों के लिए कोई विशेष योजना ?
किसानों के लिए हमारे कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने हेतु एक विशेष कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जैसा कि आप जानते हैं कि खेतों में कृषि रसायनों और उर्वरकों के सीमित मात्रा से अधिक प्रयोग पर मिटटी की उर्वराशक्ति और उसकी दशा दोनों ख़राब होती जा रही है। मिटटी में जैविक तत्व कम होते जा रहे हैं। इस स्थिति में हमारे कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस प्रोग्राम के तहत हर एक गाँव में जाकर किसानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। किसानों को बता रहे हैं कि किस तरीके से वे अपने खेत में फसल अवशेष फसल प्रबंधन करके लाभ ले सकते हैं। हमारा यह प्रयास करीब दो साल से चल रहा है। इसका किसानों के ऊपर काफी प्रभाव पड़ा है। इसका अंदाजा आंकड़ों से लगाया जा सकता है शुरुआत में यहाँ पर पराली जलाने की 84 घटनाए थी लेकिन इस वर्ष यह घटकर मात्र 40 रह गयी हैं तो कृषि विज्ञान केंद्र के प्रयासों का प्रभाव नजर आ रहा है।
किसानों को आप क्या कहना चाहेंगे ?
मै अपने किसान भाईयों को कहना चाहूँगा कि खेत में कीटनाशकों व रसायनों का प्रयोग निर्धारित मात्रा से अधिक न करें। किसान भाई प्रयास करें कि खेती में फसल सुरक्षा के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (प्च्ड) प्रणाली का उपयोग करें। इसी के साथ किसान भाई जैविक कीटनाशको का भी प्रयोग करे। इससे जल,वायु और मृदा प्रभावित होने से बचेगी। किसान भाईयों को बताना चाहूँगा कि जिले की प्रयोगशाला में परिक्षण करने पर पता चलता है कि यहाँ पर पानी में करीब 15 बीपीएम यूरिया उपलब्ध है।यहह एक सोचनीय विषय है।इस पर किसानों को थोडा ध्यान देना होगा। इस पर हमारा कृषि विज्ञान केंद्र भी किसानों को इसके विषय में जागरूक करने का प्रयास कर रहा है। तथा मै बताना चाहूँगा की हमने इस वर्ष भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् से डीकम्पोजर लाकर किसानों से प्रयोग कराया जिससे काफी लाभ मिला।इससे मिटटी की उर्वराशक्ति भी बढ़ी एवं प्रदुषण पर भी नियंत्रण हुआ। किसान भविष्य में इसको प्रयोग करने हेतु जागरूकता दिखा रहे हैं।